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मंदिर मस्जिद विवाद क्यों

सबसे पहले तो मैं ये बता देना चाहती हूं कि मैं स्वयं एक हिंदू हूं और मुझे अपनी भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पर गर्व है ।
आज के समय मे अगर कोई सबसे ज्वलंत विषय है तो वह है मन्दिर मस्जिद विवाद । मुझे समझ में नहीं आता कि हमारी विचारधारा इतनी संकीर्ण कैसे हो गई , हम तो वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वाश करने वाले लोग थे ।
 •  मैं एक बार मान भी लेती हूं कि आज जहां ज्ञानवापी मस्जिद या मथुरा में जो ईदगाह मस्जिद है , वहां पूर्व में हमारा शिवालय या भगवान कृष्ण का मंदिर था , तो हम ये क्यों नहीं समझते कि आज भी वहां ईश आराधना ही हो रही है , फर्क बस इतना है कि हम जिनको अपने मंदिर में भगवान के नाम से पूजते हैं वो उन्ही की आराधना अपनी मस्जिद में अल्लाह के नाम से करते हैं।
 • । इस सृष्टि का रचयता तो एक ही है , “एकमेव ब्रह्म द्वितीयोनास्ति ” हमारे रक्त का कलर भी एक ही है , फिर हमारे भगवान दो कैसे हो गए । क्या हमारे एक मंदिर में कई देवताओं की प्रतिमाएं नही होती , उनको तो कभी झगड़ते नहीं देखा कि अरे यह तो शिव मंदिर था यहां राम की या कृष्ण की प्रतिमा क्यों लगाई गई , तो अल्लाह भी तो उन्हीं भगवान का एक नाम है , फिर ये झगड़ा क्यों l
अगर अल्लाह और ईश्वर एक न होते तो क्या हमारे भोलेनाथ जिनके नेत्र खोलने मात्र से प्रलय आ जाती है , संपूर्ण सृष्टि ही समाप्त हो जाती है , उन्हें क्या ज्ञानवापी से अपने शिवालय को वापस लेने के लिए अपने भक्तों को आवश्यकता होती ।
हम तो उस संस्कृति के अनुयाई हैं जहां हमें सिखाया जाता है कि किस तरह हमारे प्रभु राम ने अपनी मां के एक वचन पर अयोध्या जैसे विशाल साम्राज्य को एक तिनके की भांति त्याग दिया था , वहीं दूसरी ओर उनके अनुज भरत ने भाई की आज्ञा का पालन करते हुए , अयोध्या के सिंहासन पर रहते हुए भी किसी राजसुख को स्वीकार नहीं किया था और अपने अग्रज की भांति एक बनवासी के जीवन को अपनाया था ।
फिर हम कैसे सोच सकते है कि किसी अन्य सम्प्रदाय के पूजा स्थल को उजाड़कर हम अपने भगवान के लिए जो देवालय बनायेंगे उससे हमारे इष्टदेव प्रसन्न होंगे । हमारे भगवान तो सृष्टि के कण कण में विद्यमान हैं , फिर उनके लिए एक स्थान विशेष का क्या महत्व । हम जहां भी आंखें बंद करके बैठ जायेंगे वो स्थान ही मंदिर हो जायेगा ।
हां मैं मानती हूं कि प्राचीन समय में कुछ आक्रांताओं ने हमारे मंदिरों को नष्ट करने का असफल प्रयास किया। जैसे कि मोहम्मद गौरी ने सोमनाथ मंदिर पर 17बार आक्रमण किया पर क्या वो हमारे महादेव के अस्तित्व को मिटा पाया । आज हम उनके पदचिन्हों पर तो नहीं चल सकते ।
क्या खुदा ने मन्दिर तोड़ा था ,
या राम ने मस्जिद तोड़ी है ।
चलो हमने ईश्वर और अल्लाह के बीच रेखा तो खीच दी पर क्या हम चांद सूरज को बांट पाए । उसी चांद का दीदार करके वो ईद मानते हैं , हम हिंदू स्त्रियां उसी चांद को देखकर अपने पति पुत्र की दीर्घायु की कामना करती हैं । फिर तो चांद के लिए भी कल हो सकता है हमें कोर्ट जाना पड़े कि जिस चांद को हम सदियों से पूजते आए हैं उस चांद को पूजने का अधिकार किसी अन्य सम्प्रदाय को कैसे हो सकता है ।
मंदिर मस्जिद तो बांट दिए ,
क्या सूरज चांद भी बांटोगे ।।
जो हवा हमें जीवन देती ** ,
उस हवा को कैसे बांटोगे ।
इसलिए हमे गांधी जी द्वारा दिए गए” ईश्वर अल्ला तेरो नाम , सबको सन्मति दे भगवान ” के मंत्र का अनुसरण करना होगा ,अन्यथा ये लड़ाई अंतहीन है और हमें सदियां लग जायेंगी इस विवाद को सुलझाने में । अगर हम ईश्वर प्रदत्त अपनी मेधा शक्ति का प्रयोग देश में व्याप्त अन्य समस्याओं के लिए करें तो शायद देश के विकास में हम अपना अधिक योगदान दे पायेंगे ।
ये सिर्फ मेरी सोच है हो सकता मैं गलत होऊं । अगर मेरे शब्दों से किसी की भावनाएं आहत होती हैं तो मैं उसके लिए क्षमा प्रार्थिनी हूं ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻 नीरा